कभी...
कभी...
कभी लगता है
हम चल रहे,
कभी लगता है
परिंदा बन उड़ रहे,
कभी सोच आती है
उस घरोंदे की,
कभी सोनिया सोच आती है
उन बूढ़े पंखों की ,
जवानी की खुमारी का जोश
इस कदर है हावी
उंगली थामना भूल गए
हाथ पकड़ राह दिखाने वालों की।
कभी लगता है
हम चल रहे,
कभी लगता है
परिंदा बन उड़ रहे,
कभी सोच आती है
उस घरोंदे की,
कभी सोनिया सोच आती है
उन बूढ़े पंखों की ,
जवानी की खुमारी का जोश
इस कदर है हावी
उंगली थामना भूल गए
हाथ पकड़ राह दिखाने वालों की।