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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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कभी कभी यादें

कभी कभी यादें

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कभी कभी यादें

रूबरू हो जाती हैं

आश्चर्यजनक क्षण होते है वो

जब यादें रूबरू होती हैं

लगता है ये पल

जीवन का हिस्सा नहीं हैं

जीते जागते देखे हुए सपने हैं

भला ऐसा भी सम्भव है

कि यादें प्रत्यक्ष हों

वो तो थीं

गुजरे पलों के साथ गुजरी हुयी

फिर दुबारा उनका आना।

दुबारा 

इनका लौट आना मुमकिन है।


हाँ कहानी का पूरा

भूगोल बदला हुआ होता है

और उनकी भावना

यादों सी होती हैं।

जैसे

किसी ने किसी के लिए जान दे दी

कोई आग में जला नहीं

कोई डूबा तो मिला उपहार

कोई समर्पित हुआ

और योद्धा बन गया

युद्ध पहले दिमाग में होते है

शांति की कामना ही शांति है

ऐसा ही कुछ महसूस हुआ आज

जीवन के पलों को गुजरने के बीच

और याद आया

कृष्ण का महाभारत में दिया हुआ वचन

मैं बार बार आता हूँ

यकीनन कोई आया हुआ है

ठीक ठीक वैसे ही हालात में

जिनके आने की बात हुई थी

यानी हम यादों से रूबरू हैं।


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