कब पहुंचेगी उन तक अपनी आवाज़
कब पहुंचेगी उन तक अपनी आवाज़
देश के हृदय के पन्नों पर रह गया ये मुझ पे सदा दाग,
स्वतंत्रता मिलने के बाद भी मानसिकता नहीं हुई आजाद!
खुशनुमा इस चमन का जैसे उजड़ा हुआ सा है बाग़,
क्या पता था एक दिन देश पर है लगने वाला दाग।
अंग्रेजों के आने के बाद ही के दिन से देश का फूटा भाग,
समझ लो कि की अंग्रेज शासन की गोलियों ने यहां खुब बरसाई आग!
चारों ओर त्राहि त्राहि मचा था शोरगुल हाहाकार :
सरफिरे जनरल का था वहशत गर्दो वाला दिमाग।
आंचल में भारत माता फना हो गए थे कई मां बाप के चराग़,
उजड़ गया दामन में मेरे मांग को भरने वाला सुहाग।
ख़ून से तरबतर हुई थी यहां कई सिक्खों की पाग,
नहीं रहा था अब किसी को मुंह दिखाने वाला बाग़।
ख़ून से लथपथ हुई थी धरती ख़ून से खेला गया था फाग।
आज भी उस दर्द को दिल में ही दबाएं बैठा जलियांवाला बाग़!
किसको सुनाएं अब उस खौफ के मंज़र वाला राग।
बहुत हो चुका सुनो पुकार, अब तो सब जाओ जाग !
गमों के मेले लगे गए फिर गाया सबने खुशियों का रंगराज़ ,
पर भरी महफ़िल मैं अभी भी लूटी जाती है ललनाओं की लाज ।
ना जाने सही मायनों में अपना देश कब होगा आजाद,
भाग,
कब भला ऊपर तक पहुंचेगी जनता जनार्दन की आवाज !