कैसे।
कैसे।
बता दो प्रिय! तुमको पाऊँ मैं कैसे।
विमुख होकर सम्मुख आऊँ मैं कैसे।।
यादें तुम्हारी निकलती नहीं अब दिल से।
अपने इस दिल को मनाऊँ मैं कैसे।।
कभी सोचता तुम को अपना बना लूँ।
समझ नहीं पाता तुमको समझाऊँ मैं कैसे।।
लड़खड़ाते हैं कदम तुम तक पहुँचने से पहले।
पता नहीं तुमको यह सूरत दिखाऊँ मैं कैसे।।
तुम बिन लगता अब यह जीवन भी निरर्थक।
प्रेम बिन तुम्हारे, आस जगाऊँ मैं कैसे।।
प्रबल है इच्छा तुमको कभी न भूलने की।
ये सामाजिक रूढ़िवादिता को मिटाऊँ मैं कैसे।।
गर साथ दो तो जमाने की परवाह नहीं।
"नीरज" तैयार है मिटने को दिल चीर कर के दिखाऊँ मैं कैसे।।