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Surendra kumar singh

Romance

3  

Surendra kumar singh

Romance

कैसे प्रेमी हो!

कैसे प्रेमी हो!

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कैसे प्रेमी हो

ना खुद आते हो

ना मुझको अपने पास आने देते हो।

आस लगाये तारे थककर,फिर सोने को निकले

चाह ने दिल का साथ न छोड़ा, मन फिर फिर मचले

काली काली घिरी घटायें, जम कर बरसीं इतनी

राहें डूबीं, गलियां डूबीं ,डूबीं जाने कितनी

कैसे रही हो......?


हम तो तेरे प्यार में खोए, दुनिया से बेगाने

भटक रहे हैं बुनते रहते मिलन के ताने बाने

प्रेम के बंधन में बंधने की सुनी है रीति पुरानी

ये मेरा विश्वास अटल है या मेरी नादानी,

कैसे दिलवर हो....?


एक सदी बीती दूजे ने अपना कदम बढ़ाया

मिलने के वादे हैं लेकिन अब तक तू ना आया

गुमसुम गुमसुम खामोशी ने कैसा राग सुनाया

हवा में जैसे नाच रही है तेरी सुंदर काया

कैसे रूठे हो..?

ना पास आते हो

ना मुझको अपने पास आने देते हो।


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