कैसे इंसां कहलाते
कैसे इंसां कहलाते
आँखों पर रंगों की चादर ओढ़े,
बस काला-गोरा का फ़र्क जानते।
कपटी मनुज इंसानियत के दंभी
किस मुँह खुद को इंसां कहलाते।
क्यों न समझते ,नित पैमाना गढ़ते
गोरा होना ही सुंदरता समझाते।।
पूजते श्री श्याम-राम - शिव को
क्योंकर मुझ न कुछ समझ पाते।।
बनाने वाले न कोई है फ़र्क किया
कौन हैं जो ये सब भरम फैलाते।।
मित्र, क्या हम आप ही नहीं वो
सुंदरता को मापते रहते भरमाते।।
साथियों रंगभेद-व्यसन तजे हम
एक मनुष्य कि पहचान बनाते।।
सब एक ,परमपिता की संतान
भेद नही अब कोई मान जाते।।
