कैसा इंसान हैं
कैसा इंसान हैं
अपनी शान में,
अपनी जान हैं,
लोग कहते,
कैसा इंसान हैं !
डटकर चलना,
आदत में सुमार हैं,
इंसानी रूप का,
बहुत अभिमान हैं !
आफत के आगे,
अड़चन बन जाता हैं,
मुंह बना वो भी,
आगे बढ़ जाता हैं !
दुश्मनों के लिए भी,
दोस्ती का द्वार खोलता हैं,
परायों को भी लगता,
मेरा अपना बोलता हैं !
उत्साह उमेठ कर,
पालथी में बैठ जाती हैं,
हर जीव में यही जिगर,
जी भरके चाहता हूं !