काश!
काश!
दुःख से जुडा़ है नाता
निर्धन का बेसहारों का,
काश! आँसू पोंछ लेता
कोई इनकी दर्द की रातों का l
ख्वाहिशों से करते हैं समझौता
लाचार, जग के मारे ये बेचारे,
काश! दुःख से छुटकारा मिलता
इन्हें भी किसी का सहारा मिलता l
धन से निर्धन होते हैं
पर दिल से अमीर होते हैं,
काश! दुनिया बेसहारों का
दुःख समझती इनके आँसू पोंछ लेती l
शौहरत पाने की न रखते हैं
अभिलाषा निर्धन,दूर हो गम की रातें,
काश! सामर्थ्यवान इंसान इनकी
गम दूर कर देते ये भी मुस्कुरा लेते l
भूखे को भोजन मिल पाता
बेसहारों को सहारा मिल पाता
काश! यह संभव हो पाता
सच में इनका भी जीवन निखर जाता l
दर्द,सितम और सिहरन से मिलता छुटकारा
न सहन करना पड़ता दर्द
काश ! कोई इनका दर्द समझ पाता
ये भी जिंदगी जी पाते जी-भर l
तकलीफ़ों से जुड़ा है नाता इनका
वर्षों से दुःख की रातें गुजारते हैं ये,
काश! एक दिन कोई इनकी चेहरे पर
मुस्कान ला देता ,ये भी जी भर जी पाते l
नित नयन से बहते हैं,नीर
कोई नहीं समझता है,निर्धनों की पीड़ा,
काश! कोई इनकी दर्द दूर कर देता
इनका भी जीवन निखर जाता l
इनके बच्चों का भविष्य अँधकार मेंरहता है,
कितने सपने फुटपाथ पर मर जाते हैं
काश! इनके बच्चों का सपना पूर्ण होता
इनके बच्चें भी डॉक्टर,अभियंता बन जाते l
इंसान तो हैवान,स्वार्थी बन गए हैं
दूसरे के दुःख से इनका नहीं कोई नाता,
काश! प्रभु ही इनकी दर्द समझ पाते
जीवन दिया है,जीने को तो गम दूर कर l
