काश
काश
काश चेहरे बदलने से ज़्यादा
कोई रूह बदल देता
तुझ में ज़रा सा मैं रख देता
मुझमें सारा तू रख देता
सर्द कोहरे की चादर पर
नरम सी हल्की कोई धूप
सुर्ख़ रात में जलती लौ
या अंधेरे में कोई जुगनू रख देता
थोड़ा तो मुझमें तू रख देता
अब क्या कह कर पुकारूँ?
खुद को खुदी से कब तक बचा लूँ
जाऊँ फिर किसी सफ़र पर
या निकलूँ फिर तेरी रहगुज़र से
खुद को कैसे कामिल बना लूँ
रूह को नक़्श पर कैसे उतारू
काश कोई तो मुझमें फ़न कर देता
तुझमें ख़ुदा थोड़ा मैं कर देता
मुझमें सारा तू कर देता।।