कान्हा भजन
कान्हा भजन
कान्हा मुरली बैरन बन गई सारी रात जगाये मुझे क्या हो गया है सब सखिया मोही ताना मारे छेडे और सताये
मुझे.......
ओ प्यारे मोहना फिर से सुना दो मुरलिया सून के जिसे मे आऊ पास ये तुम्हारे ओ छलिया पास मे तेरे जब भी आऊ मन मेरा घबराये
मुझे......
जमुना के तट पे कान्हा रास रचाये एक बार फिर रूप दिखा के अपनी बाबरी बनाल एक बार फिर रास रचाये मोहन जब भी होश मेरे उड जाये
मुझे.......
बन्सी बजाके ए कान्हा अब ना सताओ मान जाओ ना चीर चुराके कान्हा अब ना सताओ मान जावो ना पाव पढू मे तेरे मोहन काहे मोहे सताये
मुझे..........