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Snehal Singh

Drama

3  

Snehal Singh

Drama

कांच के ख़्वाब

कांच के ख़्वाब

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देखा जिन्हें बंद आँखों से,

वो ख्वाब में मदहोशी थी,

आँखें खुली तो एहसास हुआ,

चारो ओर तो खामोशी थी।


जिन लफ़्ज़ों में बयान हुआ अब तक,

मेरे सपनों का वो मंज़र था,

उन्हीं ख्वाहिशों ने रौंद दिया उन्हें,

जो मेरे ज़िन्दगी का समुन्दर था।


करवटें बदलते-बदलते बीत गयी रात,

नयी सुबह का यह किनारा था,

खो कर सारे सपने अपने शायद,

नयी शुरुआत की ओर इशारा था।


बिखर चुके थे सपने अब मेरे,

समेटने में फायदा ना गवारा था,

शुरू से शुरुआत की घड़ी यही है,

और अब सारा पल हमारा था।


तब्दील करने हैं कुछ मौसम बेरुखे,

बूंदें किस्मत की अब बरसानी हैं,

बहुत हुआ ये टुकड़ो को फ़ेकना,

अब ज़िन्दगी में कांच के ख्वाब सजाने हैं।



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