काम की बात
काम की बात
इस महामारी
सीखी यह बात
शायद आपके भी
काम आ जाए,
छोटी-छोटी बातों पर
करकर झगड़ा
इस जिन्दगी को
यूँ क्यों गवांए,
अपनों से
नाराजगी
बेवजह ना बढ़ाएं,
रूठा है कोई
तुमसे तो
उसे तुरन्त मनाएं,
समय निकल
जाने पर
व्यर्थ है पछताना
क्योंकि
रिश्तों के दरमियां
जब दूरी जगह
बनाने लग जाए
तो मुश्किल हो जाता है
ऐसे रिश्ते
लंबे समय टिक पाएं,
लंबी तो
यह जिन्दगी
ही नहीं है
फिर क्यों
इस जिंदगी को
नफरत की भेंट दी जाए,
क्यों ना इसे
प्रेम और सद्भाव का
तोहफा दिया जाए
जिससे इसमें
रंगों की छटा
बिखर जाए,
रिश्तों को सींचकर
अपनेपन की फौहार से
आओ उनमें
विश्वास और उम्मीद की
नई किरण जगाई जाए,
फिर ना रहे द्वेष कोई
ना रहे अपमान की भावना
आओ मिलकर जगाएं
सब में यही सद्भावना।