जज़्बात
जज़्बात
कैसे कहे कोई दिल की बात
हो चुके हों लहूलुहान जब जज़्बात
शाख के वे बिछड़े हुए पत्ते
पाएं कैसे ज़िन्दगी की सौगात
हंगामे कितने ही हो ज़िन्दगी में
दस्तक देती है कभी अंधेरी रात
उलझाव कभी नहीं रोक सकते
मुकद्दर में गर लिखी हो मुलाकात
राहगीर वैसे मिलते है कई राह में
मुमकिन नहीं पर मिलते हो ख्यालात
उन्हें ज़िद थी हम उनके हमराज़ बने
पर कमबख्त दफन थे हमारे जज़्बात
ज़रूरी नहीं अश्कों की नुमाइश हो
बस इंतज़ार है, बरस जाए बरसात
खामोशियों की गिरफ्त में अक्सर
दफन हो जाते हैं कितने सवालात