STORYMIRROR

Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract

4  

Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract

जज़्बात

जज़्बात

1 min
272

कैसे कहे कोई दिल की बात

हो चुके हों लहूलुहान जब जज़्बात


शाख के वे बिछड़े हुए पत्ते

पाएं कैसे ज़िन्दगी की सौगात


हंगामे कितने ही हो ज़िन्दगी में

दस्तक देती है कभी अंधेरी रात


उलझाव कभी नहीं रोक सकते

मुकद्दर में गर लिखी हो मुलाकात


राहगीर वैसे मिलते है कई राह में

मुमकिन नहीं पर मिलते हो ख्यालात


उन्हें ज़िद थी हम उनके हमराज़ बने

पर कमबख्त दफन थे हमारे जज़्बात


ज़रूरी नहीं अश्कों की नुमाइश हो

बस इंतज़ार है, बरस जाए बरसात


खामोशियों की गिरफ्त में अक्सर

दफन हो जाते हैं कितने सवालात



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract