जयघोष....
जयघोष....
स्वतंत्रता का जयघोष था वो
खून के बदले आजादी का उद्घोष था वो
स्वतंत्रता के गांडीव लिए धनंजय सा वीर था वो
सुखों को दधीचि सा बज्र देता महावीर था वो
गुलामी की बेड़ियों को तीव्र प्रहार था वो
भारत माता के शीश का श्रृंगार था वो
खूब रोई थी धरा जो अभिमन्यु सा विभूति दी
जिसने आजादी के हवन में अपनों की ऐसी आहुति दी
लें आई थी उसने आजादी-घटा उस पारावर से
हिटलर को भी विद्वता दिखाता किसी महावर से
उसने खूब लड़ा आजाद हिंद गोरों से
बस प्राण दे गया घर में छिपे जयचंदों से
नवउदित दिवाकर में जैसे अवसान हो गया
आजाद विपिन सिंह-विहीन श्मशान हो गया
मत भूलो आजादी के मीनार का नींव था बोस
बंजर वसुधा को गुलशन बनाता सजीव था बोस
भारत आज सीना ताने अड़ा हुआ है
बोस जिंदा या मरा है का प्रश्न भी खड़ा हुआ है
शर्म करो गद्दारों तुमने कैसी रीत निभाई
सम्मान छोड़ उसके प्राणों की भी बोली तुमने लगाई
अब तो जाई जननी के दुग्ध का भान करो
आजादी के गंध में विलीन सुभाष का सम्मान करो।