जय हिन्द
जय हिन्द
कुछ सेंक रहे हैं रोटियाँ,
सेना की जलती लाशों से,
कुछ खेल रहे हैं जाति-धर्म
राजनीति के पाशों से।
इनकी हरकत देखकर,
भारत माँ भी लजाई हैं।
आपस में ही फूट डालते,
ये कैसे अपने भाई हैं।
संहारों पर संहार हो रहा
भारत माँ के लालों का।
अपने ही तो मोहरा बन रहे,
दुश्मन के हर इक चालों का।
आतंकी को इस खेल में
जिसने भी जीत दिलायी है,
हाथों में लेकर तिरंगा,
हमने भी कसमें खाई है।
जो वर्षों से नासूर बना,
उसको उखाड़कर फेकेंगे।
कर्म युद्ध में कूद पड़े हैं,
अब जो भी होगा देखेंगे।
इक-इक चिथड़े के बदले में,
सौ-सौ चिथड़े कर आयेंगे।
कसम है हिंद की मिट्टी का,
दुश्मन न बख्शे जायेंगे।
हर बार क्षमा का दान दिया,
इस बार आर या पार होगा।
अब देश धर्म की ख़ातिर
हर हाथों में हथियार होगा।