जूही बेला मोगरा की कली
जूही बेला मोगरा की कली
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जूही बेला मोगरा की कली
खिलती बाबुल के अँगना
महकती महकाती
सँवारती घर पिया का
गाती गुनगुनाती।
पीर न उसकी
जाने कोई
दर्द सबका अपनाती
खुद भूखी रह कर भी
माँ का फ़र्ज़ निभाती।
जूही बेला मोगरा की कली
खिलती बाबुल के अँगना
महकती महकाती
कोई उसको समझे न पर
रोती लुटती बीच बाजार
रौंदी मसली जाती।
गंदी नाली में दी जाती फेंक
चाहे कितना करे चीत्कार
तड़पाता उसे ज़ालिम संसार
खरीदी बेची जाती।
जूही बेला मोगरा की कली
झूठी मुस्कान होठों पर लिये
आखिर मुरझा जाती।
जूही बेला मोगरा की कली
खिलती बाबुल के अँगना
महकती महकाती।।