जरूरी तो नहीं
जरूरी तो नहीं
ज़िन्दगी में सब मिले ये जरूरी तो नहीं
चिराग़ तले अँधेरा ना हो ये जरूरी तो नहीं।
वक़्त बेवक़्त हम भी ढूंढ़ते हैं आशियां अपना
घर हमारा शजर हो, ये जरूरी तो नहीं।
नहीं आती शायरी लिखना मुझे
पर तुम्हें लिखने का हुनर ना हो, ये जरूरी तो नहीं।
ख़ामियाज़ा भुगता है इस कलम ने दर्द लिखकर
क्योंकि हर शख्स यहाँ तुम सा हो, ये जरूरी तो नहीं।
काटी नहीं जाती है अब ये रात तुम बिन
हमेशा मुझे ही काँटे मिले, ये जरूरी तो नहीं।
ख़्वाबों के परिंदे अब दूर तलक उड़ा करते हैं
पाँव रखने पर जमीं से मोहब्बत हो, ये जरूरी तो नहीं।
तेरी यादों की खुशबू अब चारों तरफ फैलना चाहती है
पर मेरी कैद से निकल जाए, ये जरूरी तो नहीं।
बेअदब ताल्लुक रखते हैं हर मुलाकात से
पर हर मुलाकात में वही "शिवानी" हो, ये जरूरी तो नहीं।
ग़मगीन मौसम था, जनाज़ा हमारा भी निकला
फूल देकर वो उसमें शामिल हो, ये जरूरी तो नहीं।।