भीड़ बहुत थी उनकी दिल की दुकां में
भीड़ बहुत थी उनकी दिल की दुकां में
भीड़ बड़ी थी उनकी दिल की दुकां में
हम आ बैठ गए अपने बंज़र मकां में।
चाहते तो हैं अब भी उन्हें बहुत हम
पर नहीं है आवाज़ इश्क़ की जुबां में।
वो चाहते तो न बिछुड़ते राहों में हम
दर्द बहुत है हमारे दिल की बयां में।
हर रोज़ ज़रा-ज़रा सा मरते हैं हम
पर किसी ने आब न दी शमशान में।
यक़ीन नहीं होता तो तकिये से पूछ लेना
कितनी रातें गुजारीं हैं उनकी निगेबान में।