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SHIVANI KUMARI

Tragedy

5.0  

SHIVANI KUMARI

Tragedy

भीड़ बहुत थी उनकी दिल की दुकां में

भीड़ बहुत थी उनकी दिल की दुकां में

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भीड़ बड़ी थी उनकी दिल की दुकां में

 हम आ बैठ गए अपने बंज़र मकां में।


चाहते तो हैं अब भी उन्हें बहुत हम

पर नहीं है आवाज़ इश्क़ की जुबां में।


वो चाहते तो न बिछुड़ते राहों में हम

दर्द बहुत है हमारे दिल की बयां में।


हर रोज़ ज़रा-ज़रा सा मरते हैं हम

पर किसी ने आब न दी शमशान में।


यक़ीन नहीं होता तो तकिये से पूछ लेना

कितनी रातें गुजारीं हैं उनकी निगेबान में।


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