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हर रोज़ ज़रा-ज़रा सा मरते हैं हम पर किसी ने आब न दी शमशान में। हर रोज़ ज़रा-ज़रा सा मरते हैं हम पर किसी ने आब न दी शमशान में।
ठहरो जरा काली रात अभी बाकी है किधर जा रहे हो। ठहरो जरा काली रात अभी बाकी है किधर जा रहे हो।
ग़मगीन मौसम था, जनाज़ा हमारा भी निकला फूल देकर वो उसमें शामिल हो, ये जरूरी तो नहीं। ग़मगीन मौसम था, जनाज़ा हमारा भी निकला फूल देकर वो उसमें शामिल हो, ये जरूरी तो नही...