जरा संभल कर चल
जरा संभल कर चल
जीने की हसरतें कहीं रह ना जाए अधूरी
अपनों से बनाकर चल थोड़ी दूरी।
बदला-बदला कुछ मौसम का मिजाज है
अंजान साए के खौफ से डरा-सहमा इंसा आज है।
जिंदगी से अब मौत की गिरेबान बड़ी है
तरफदारी नहीं करती वक्त की घड़ी हैं।
आजकल वीरान-ए-श्मशान आबाद हैं
बस्तियों में जिंदगियाँ सरेआम बर्बाद हैं।
आज संभल जाएगा तो, कल भी आएगा
अपनों से मिलने का, सुखद पल भी आएगा।
संभला नहीं आज तो, बड़ा पछताएगा
कल मुँह में केवल दो बूँदें गंगाजल ही पाएगा।
जरा संभल कर चल।