प्रतिज्ञा करें
प्रतिज्ञा करें
आओ प्रतिज्ञा करें
जीवन हमारा पर्यावरण का गुलाम है
एक-एक साँस इसके नाम है
यहाँ तो उलटी गंगा बह रही है
विनाश लीला सुनो क्या कह रही है--?
ओजोन की परतें कमजोर हो रही है
भूकंप, आँधी, तूफान के बवंडर से सिरजोर हो रही है
बिन मौसम बदरा बरस रहे हैं
भगवान जी भी जमीं पर अवतार को तरस रहे हैं।
रोज उदय होने वाला सूरज
बादलों के बिगड़ते मिजाज़ में
अस्त होने के कगार पर है
अपनी धुरी पर घूमती धरती
धुरी बदलने के विचार पर है।
तप-साधना से गुंजायमान
होने वाले जंगलों से
गूँजने वाले मंत्र ओम-ओम
कटते जंगलों की चीत्कार से गूँजते हैं होम-होम।
ऋषि-मुनियों और तपस्वियों की घोर साधना से
सघन जंगलों की जो हसीन वादियाँ
पुण्य हो जाती थी
अब वह बिखरे पड़े अवशेषों से
अपने पुण्य कर्मों के कल को तलाशती हैं।
आओ पर्यावरण दिवस पर प्रतिज्ञा करे
द:ख-क्लेश सारे प्रकृति के हरे
अपने अथक प्रयासों से
फिर से लौटा देते हैं,
इसकी हरी-भरी स्वच्छ बहार
पेड़-पौधे, वन-संपदा तथा ऊँचे ऊँचे पहाड़।