माँ भारती
माँ भारती
#छंद- भुजंग प्रयात
#वर्ण12--122,122-122,122
जहां में अकेली, उषा गा रही है
मही ही अकेली,सजी जा रही है
सवेरा हुआ है,उजाला हुआ है
बसेरा सभी का,नवेला हुआ है।।
हमेशा रहे तू, रहूँ ना रहूँ मैं
यशो गान तेरा,सदा ही भजूँ मैं
सदा दुश्मनों से,लडाई लडा था
भला मृत्यु से भी,कभी मैं डरा था।।
डिगे भी कहाँ थे,सिपाही मही के
बढे जा रहे हैं, सिपाही धरा के
वही जो लडे थे,यही बाँकुरे हैं
शहीदी बने हैं, जमीं में पडे हैं।।
मुझे आन है मैं, यहीं पे पला हूँ
मुझे गर्व है मैं, तुझी पे मिटा हूँ
जहां में कभी भी,पुनर्जन्म होवे
डटा मैं रहूँगा,भरत भूमि होवे।।
धरा पावनी ये, धरा पूजनीया
धरा अर्चनीया, धरा वंदनीया
बसा है तिरंगा, रगों में हमारी
सजा है तिरंगा, दृगों में हमारी।।
