जरा सा
जरा सा
अपना कर्म निभाता चल रहा हूं डगर पे I
हर एक की खबर रखता हूं अपनी नजर पे
फिर भी शिकायत चल रही साये की जैसा I
वे कहते हैं,मैं परेशान दिखता हूँ जरा सा I
ये पत्थर सदियों से राह में ऐसे ही हैँ I
देखता हूं पास से मेरी चाह ऐसे ही हैं I
कोई मुझे समझता है अपना रोड़ा कैसा I
हर बेदर्द नजरों से सबक सीखता हूँ जरा सा I
मचलता है मन बादलों नदियों को देखकर I
पिघलता है मन घायल पंक्तियों को लिखकर I
क्या जीवन क्या जीवन शैली है ये कैसा I
दोषी कौन खुद से खीझता हूँ जरा सा I
ये दुनियां परतों परतों में बनी है I
ये धरा टीलों और गर्तों मे बनी है।
सब फकीर दाम देव के लगन वेश जैसा I
श्री देव के चरणों में मन सिंचता हूँ जरा सा I