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GOPAL RAM DANSENA

Abstract

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GOPAL RAM DANSENA

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जरा सा

जरा सा

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अपना कर्म निभाता चल रहा हूं डगर पे I

हर एक की खबर रखता हूं अपनी नजर पे

फिर भी शिकायत चल रही साये की जैसा I

वे कहते हैं,मैं परेशान दिखता हूँ जरा सा I


ये पत्थर सदियों से राह में ऐसे ही हैँ I

देखता हूं पास से मेरी चाह ऐसे ही हैं I

कोई मुझे समझता है अपना रोड़ा कैसा I

हर बेदर्द नजरों से सबक सीखता हूँ जरा सा I


मचलता है मन बादलों नदियों को देखकर I

पिघलता है मन घायल पंक्तियों को लिखकर I

क्या जीवन क्या जीवन शैली है ये कैसा I

दोषी कौन खुद से खीझता हूँ जरा सा I


ये दुनियां परतों परतों में बनी है I

ये धरा टीलों और गर्तों मे बनी है।

सब फकीर दाम देव के लगन वेश जैसा I

श्री देव के चरणों में मन सिंचता हूँ जरा सा I 


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