जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे
जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे
जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे
मैं उनसे मिलने उनके पास चला जाऊँगा।
नदी जैसे लोगों से मिलने नदी किनारे जाऊँगा,
एक उफनती नदी कभी नहीं आएगी मेरे घर,
कुछ तैरूँगा और डूब जाऊँगा।
जो लोग मुझसे रिश्ते निभाएंगे
मैं उन पर पूरे दिल से मोहब्बत लुटाऊँगा।
जब कभी वे मुझसे रूठेंगे तो मैं मनाऊँगा,
उनके ताने, गिले, शिकवे मेरे सिर आँखों पर,
रिश्ते जोडूंगा, चाहे मैं टूट जाऊँगा।
ख़ुदा न करे उन पर कोई ग़म आए
मैं उनके आँसू पोंछने सबसे पहले जाऊँगा।
उनके रोते हुए चेहरों पर मुस्कान लेकर आऊँगा,
खुद को तन्हा पाऊँगा, अगर यह न सका कर,
चांद से उसकी चांदनी लूट लाऊँगा।
कभी मुझसे कोई ख़ता हो जाए
मैं नंगे पाँव दौड़कर उनके पास जाऊँगा।
दोनों कान पकड़कर अपने घुटनों पर आऊँगा,
उन्होंने माफ़ी कुबूल करके माफ़ न किया अगर,
मैं उनसे हमेशा के लिए रूठ जाऊँगा।
