जो भी हुआ कोई खेद नहीं
जो भी हुआ कोई खेद नहीं
जो भी हुआ कोई खेद नहीं, बस इतना है संताप मुझे
आप ने जीवन को समझा, पर समझ न पाए आप मुझे
हर कहा आप का सच माना, औरों की बात न मान सका
आँखों की भाषा पढता रहा, ह्रदय का सच न जान सका
सजा मिली है जो भी हमें, मंजूर है हर इन्साफ मुझे
पर खता तो मेरी बतला दो, चाहे मत करना माफ़ मुझे
आप ने जीवन को समझा पर समझ न पाए आप मुझे
मात्र वही तो सत्य नहीं, जिसको तुमने स्वीकारा
मात्र वही सारांश नहीं, जिसके आगे जीवन हारा
कैसा प्रेम बिना जीवन, बिन प्रेम क्या पुण्य और पाप मुझे
माना प्रेम को जीवन प्रिय और मिला है प्रेम विलाप मुझे
आप ने जीवन को समझा पर समझ न पाए आप मुझे
एक बार तो कह देते प्रिय, प्रेम हमारा सत्य नहीं है
मात्र दया की है मुझपर, प्रिय मेरा कोई कृत्य नहीं है
आप सत्य तो कहते मुझसे, ना देते इंसाफ मुझे
लगता है तो लगने देते प्रिय जीवन अभिशाप मुझे
आप ने जीवन को समझा पर समझ न पाए आप मुझे
जो भी हुआ कोई खेद नहीं बस इतना है संताप मुझे
आप ने जीवन को समझा पर समझ न पाए आप मुझे।