जन-गण नायक
जन-गण नायक
बहुत कुछ
लिखना चाहता हूँ
पर कोई पढ़ता
ही नहीं
कुछ कहना चाहता हूँ
पर कोई
सुनता ही नहीं !
आँखें धुँधली सी
हो गई है ,
सबकी आँखों में
पतला सा
माँस का परत
जम गया है !
डॉक्टर कहते हैं
यह पुराना
रोग “टेरिजम”
हो गया है !
बहाना तो अब
हमें मिल गया है ,
कोई कुछ भी लिखे
हमें क्या करना है ?
आवाजें उठती हैं
चीखें बेबसी की
दसों दिशाओं में
फैलती है !
पर हम बधिर
बन गए हैं,
“ब्लू टूथ“ के यंत्रों
को अपने कानों में
लगा रखे हैं !
मुझे किसी की
व्यथाओं से क्या लेना ?
किसी का रोजगार
छूट जाए तो क्या करना ?
किसी को
दो वक्त की रोटी
नहीं मिले तो
क्या कर सकते हैं ?
मंहगाइयों की मार से
कमर टूट जाए
तो हम क्या कर सकते हैं ?
हमें बिठाया है
सिंहासन पर
मुकुट नेतृत्व का
पहनाया है,
हम अकर्मण्य बन भी
गए तो क्या होगा ?
फिर भी हमें
सबने अपनाया है !
और देशों में
वहाँ के लोग
उनकी कार्यशैली
को देख कर रखते हैं !
पर यहाँ की बात
कुछ और है,
पाँच सालों में
अपने देश तक
को बेच सकते हैं !
दर्द का एहसास
उसी को होता है ,
जो सुईयों की चुभन को
दिन- रात सहता है !
जगह का नाम बदलने से
वहाँ की तस्वीर
नहीं बदलती है !
वहाँ कुछ काम
हो अद्भुत
तभी कुछ बात बनती है !
अभी भी वक्त है
कुछ काम करने का ,
व्यथा ,दर्द और ग्लानि
से सबों को
मुक्त करने का !
तभी इतिहास हमको
सदा ही याद
करता रहेगा !
हर जमाने में
हमारी कृतियों
का यशगान
सदा होता रहेगा !