'जमीन '
'जमीन '
ऊँचाई मिलने पर जमीन न छोड़े ,
पद प्रतिष्ठा की आड़ में अपने कर्तव्य से कभी मुख न मोड़े ।
उड़ने में तुझे न जाने खाने पड़े हैं कितने रोड़े,
हम कृतज्ञ हैं भूल जाएगें गुणों को बिना सुद - समेत चुकाये थोड़े।
दृढ़ हो गया है तुम्हारा बदन खा- खाके कोड़े।
ऊँचाई मिलने पर जमीन न छोड़े।
तू कितनी बार हारा है, मन मारा है। लेकिन फिर उठ खड़ हुआ है,
घूटना&n
bsp;टेका है तुने कभी थोड़े ।
पाषाण हृदय को तोड़ने के लिए तुझे चलाने पड़ेंगे वज्र के हथोड़े।
न धूप देख, न छाँव की इच्छा पाल पड़ने दे पाँव में छाले।
छोड़ व्यर्थ का झंझट , कट जायेगा समय कर न यूँ ही बख़ेडे।
ऊँचाई मिलने पर जमीन न छोड़े।
रास्त बड़े कठिन है चलना बीच में न कभी छोड़े ,
पा लेंगें हम मंजिल, हो भले ही हो देर -सवेरे ,
हम अकेले तो नहीं जो जीवन के झंझावात के लगा रहे फेरे।
ऊँचाई मिलने पर जमीन न छोड़े।