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Brijlala Rohan

Inspirational

4.0  

Brijlala Rohan

Inspirational

'जमीन '

'जमीन '

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 ऊँचाई मिलने पर जमीन न छोड़े ,

पद प्रतिष्ठा की आड़ में अपने कर्तव्य से कभी मुख न मोड़े ।                         

उड़ने में तुझे न जाने खाने पड़े हैं कितने रोड़े,

हम कृतज्ञ हैं भूल जाएगें गुणों को बिना सुद - समेत चुकाये थोड़े।            

दृढ़ हो गया है तुम्हारा बदन खा- खाके कोड़े।              

ऊँचाई मिलने पर जमीन न छोड़े।                     

तू कितनी बार हारा है, मन मारा है। लेकिन फिर उठ खड़ हुआ है,

घूटना&n

bsp;टेका है तुने कभी थोड़े ।                   

पाषाण हृदय को तोड़ने के लिए तुझे चलाने पड़ेंगे वज्र के हथोड़े। 

न धूप देख, न छाँव की इच्छा पाल पड़ने दे पाँव में छाले। 

छोड़ व्यर्थ का झंझट , कट जायेगा समय कर न यूँ ही बख़ेडे। 

ऊँचाई मिलने पर जमीन न छोड़े।                 

रास्त बड़े कठिन है चलना बीच में न कभी छोड़े ,           

पा लेंगें हम मंजिल, हो भले ही हो देर -सवेरे ,

हम अकेले तो नहीं जो  जीवन के झंझावात के लगा रहे फेरे।  

ऊँचाई मिलने पर जमीन न छोड़े। 


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