जल, प्रकृति और पर्यावरण
जल, प्रकृति और पर्यावरण
गंगा जमुना नदियों में जहाँ पवित्र मीठा जल बहता था
माता देती है जीवन, प्रकृति में भगवान का वास होता है
इंसान की तरह पेड़ भी रोता है बेबस होता है जब बेमौत
उमर से पहले जीतेजी उसकी गर्दन पर वार
तेजधार हथियार से होता है
बढ़ रही जनसंख्या, जिसकी लापरवाही से
पर्यावरण दूषित और नष्ट होता है
माना जरुरते होती है जिंदगी में जल, प्रकृति
और पर्यावरण से
पर जरूरत से ज्यादा बर्वादी से पर्यावरण को
हानि होती है जब मानव मस्तिष्क का ह्रास होता है
प्रकृति के विरुद्ध खड़ा हो आज का मानव खत्म कर रहा है जंगल,
जंगल के जानवर तक नहीं छोड़ अपने शौक,
कालाबाजारी करने के लिए कई बार शिकार पर होता है
सुंदर दुलर्भ होते जंगल के जानवर पौधे पक्षी प्राणी,
कल्पना करो
अगर नहीं रहे कहाँ देखने, ढूँढने जाओगे,
चलो मानो वरदन मिल जाए जल रहित जी सकते हो तुम
तो इस जहाँ में, बिन पेड़ पर्यावरण, अकेले चैन न पाओगे
जल, प्रकृति और पर्यावरण का
प्रकृति का ऐसा मनोहर दृश्य कहाँ पाओगे
कहाँ पाओगे सम्मान विदेशों में
जब अपने पर्यावरण से खिलवाड़ करते जाओगे।