जल का निवेदन
जल का निवेदन
जल के रूप होते है अनेक
कहीं छोटी नदियों का समूह
तो कहीं उन्ही के मिलकर बानी हुई
एक विशालकाय सागर की कहानी।
सिर्फ आकार में ही नहीं
उद्देश्य में भी है ये भिन्न सभी
पूरे समुद्री जीवन का तो आश्रय है
पर ज़मीन पर भी प्यासे की सहारा है।
बावजूद इसके जल संसाधन का मोल नहीं क्या तुम्हें ?
यूँ हि हज़ारो टन बहा रहे हो ?
जल को स्वच्छ रखना कर्त्तव्य नहीं क्या तुम्हारा ?
भविष्य को अंधकार से सजा रहे हो।
संसाधन है बहुत सीमित
बूंध बूंध का हिसाब रखना होगा तुम्हें
नहीं तो दिन दूर नहीं अब वह
जब भूजल का स्तर तुम्हारे बस में न होगा
झील की आवाज़ थम जाएंगी
समुद्र का सहारा लेने को मजबूर हो जाओगे
पर नसीब में एक बून्द भी न रह पाएगा।