जिया जाए
जिया जाए
क्यों न आज इस जिंदगी को जिया जाए,
खुलकर थोड़ा हंसना तो खुलकर थोड़ा रोया जाए,
हाँ, क्यों न आज इस जिंदगी को जिया जाए।
गिरते- उठते, लड़ते- संभलते,
क्यों न इस जिंदगी को भी परखा जाए।
क्या एक ही वक्त में ठहर कर रह जाना,
अब नदियों जैसे अविरल बहा जाए।
कब तक अंधेरों में ही घिरे रहोगे,
आज बाहर निकल सूरज की रोशनी में नहाया जाए।
दूसरों की ही क्यों सुने,
अपने दिल की सुन अब कुछ नया किया जाए।
यह समय किसी के लिए नहीं रूकता,
तो क्यों न अब समय के साथ ही चल दिया जाए।
मैं भी जिंदा हूँ,
आज खुलकर सांस ले यह अहसास दिलाया जाए।
अपनी छुपी को तोड़,
अब अपनी आवाज को भी सही के लिए उठाया जाए।
जो छोड़ गए मुझे वह मेरे थे ही नहीं,
उनकों भूला कुछ इश्क़ खुद से ही किया जाए।
क्यों न आज इस जिंदगी को जिया जाए।
