माँ के नाम एक कहानी
माँ के नाम एक कहानी
सोचती हूँ माँ के नाम एक कहानी लिखूँ,
अधरों पर सजी मुस्कान के पीछे आंखों का छिपा पानी लिखूँ।
ईश्वर की सबसे नायाब रचना है माँ,
जो न जाने कब कोमल सी कली से जिम्मेदारियों की मूरत बन जाती है।
माँ तो अपने बच्चे के खातिर अपनी खुशी, सपने, खुद को ही भूल जाती है।
दुनिया के ताने, दुत्कार सुन यह जिंदगी माँ की गोद में ही सुकून पाती है।
कम ही लगता है चाहे जितना माँ के लिए लिखूँ,
चाहे उसके लिए मेरे दिल में छुपे हर एक जज्बात लिखूँ,
माँ ही हर दर्द की मरहम है,
मेरी कलम भी तुम्हारे सामने नतमस्तक है,
माँ भला मैं तुम्हारी तारीफ में क्या लिखूँ।
बस सोचती हूँ कि माँ के नाम एक कहानी लिखूँ,
अधरों पर सजी मुस्कान के पीछे छिपा आंखों का पानी लिखूँ।
