जिस्मि जनाजा
जिस्मि जनाजा
बस गई हैं बस्तियां ये भी दिखावा है
आदमी की भीड़ में आदमी ही अकेला है
महंगाईसे बाजार में थम गई उमंगे हैं
गमों की माला से सजा जिस्मी जनाजा है
निवाले की दिवाली अरे क्युं ये छलावा है
रूह में अगन और सीने में तो हताशा है।
बस गई हैं बस्तियां ये भी दिखावा है
आदमी की भीड़ में आदमी ही अकेला है
महंगाईसे बाजार में थम गई उमंगे हैं
गमों की माला से सजा जिस्मी जनाजा है
निवाले की दिवाली अरे क्युं ये छलावा है
रूह में अगन और सीने में तो हताशा है।