जिनको हम बहुत चाहते हैं
जिनको हम बहुत चाहते हैं
हम जिनको अक्सर बहुत चाहते हैं
जाने कब रूह में उतर जाते हैं
फिर दुबककर दिल के किसी कोने में
एहसासों के कच्चे धागे कुतर जाते हैं
हमें भला कब ऐतराज था कि
उनको चाहिए इस दिल में कोई ठिकाना
मगर हमारी भी यहाँ शर्त ये थी कि
ताउम्र छलकता रहे इश्क़ का पैमाना
यहाँ हमारी परेशानी ये है कि
कैसे कटेगा लंबा सफ़र उनके बिन
मगर वह तड़पते हैं इस इंतज़ार में
कब ढलेगी रात और कब होगा दिन
तुम हमको न चाहो बेशक तुम्हारी मर्ज़ी
मगर ये तो बताओ क्या कहता है दिल
चेहरे की खामोशियाँ तो बता रही हैं
अब तक नाराज है गालों का काला तिल
हमको भला क्यों बेवजह ऐतराज होगा
तुम्हारा दिल कहाँ-कहाँ भटकने लगा है
मगर बेशुमार सुकून मिलता है जब ये सुना कि
हमारा दिल तुम्हारी ज़ुल्फ़ों पर लटकने लगा है।