ग़ज़ल: जिनको अपना बनाए बैठे थे
ग़ज़ल: जिनको अपना बनाए बैठे थे
जिनको अपना बनाये बैठे थे, दिल में बसाये बैठे थे।
हमको उस शख़्स ने ही ठुकराया ।
1. मेरी बर्बादियों पर खुश हैं वो,
दिखते ऊपर से थे जो हमसाया।
2. मेरी किस्मत का तो ये आलम है ,
फूल चाहा, हमेशा खार आया
3. हमको ज़ज़्बा-ए-मोहब्बत ने फ़ना कर डाला,
आज तक ख़्याल न एक बार आया।
4. या खुदा हम भी कितने भोले थे,
उनको ऐतबार न हर बार आया।
5. बचा ही क्या है , ज़िन्दगी में 'सुख'
तेरे दर से हो शर्मसार आया।
✍️ उल्लास भरतपुरी

