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Renuka Chugh Middha

Classics

5.0  

Renuka Chugh Middha

Classics

जिन्दगी

जिन्दगी

1 min
201


मेरी जिन्दगी कुछ इस तरह से तुझे जीती हूँ मैं, 

तेरा हर पल हैं एक पहेली,

कभी -कभी बन जाती हैं तू मेरी सहेली। 


साथ में तेरे खेलती हूँ रोज नये-नये खेल,

कभी नाराज होकर कर तू, कर लेती हैं मुझसे बैर। 


कभी प्यार से सर सहलाती है

तो कभी ठोकर दे जाती है।

बूझो तो और कठिन हो जाती है,

रूठो तो झट से तू मना जाती है। 


बनाकर सपनों को अपनी सीढ़ी,

हर रोज एक क़दम नया चलती हूँ, 

ख़्वाबों को देख बदलता हक़ीक़त में,

अक्सर ख़ुश होकर सजदा करती हूँ। 


खुशी दे जो पल मुझको

उनको ही बस अपनानाती हूँ मैं, 

झूठी तारीफों के पुल पर

कभी ना चल पाती हूँ। 


जिन्दगी तो एक किताब है,

जिनमे कोरे पन्नो का सैलाब है, 

भरती हूँ इसे रंगीन शब्दों से,

वक़्त तो सबके लिये आफ़ताब है। 


जब कर बैठती थी नादानी,

तूने ही डाँट कर रास्ता दिखाया, 

ए जिंदगी शुक्रगुज़ार हूँ मैं,

तूने मुझे जीना सिखाया। 


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