ज़िन्दगी – क्यों कर
ज़िन्दगी – क्यों कर
उसकी चिंता में, जो इक दिन जाना है,
क्यों कर हम ज़िन्दगी बिताते हैं,
इस जीवन रूपी माया में,
कुछ ज्यादा जीने की लालच में,
क्यों कर हम सब कुछ गवाते हैं,
खुशियों से भरो अपने संसार को,
यह सब बतलाते हैं, मगर,
फिर भी ना जाने,
क्यों कर अपनों से ही हम सब कुछ चुराते हैं,
आदर निरादर की परिभाषा को,
हम सब बखुबी जानते हैं,
क्यों कर फिर हम अपनों के दिल को रुलाते हैं,
इस काल चक्र की माया में,
हम यूहीं फस जाते हैं,
कुछ बड़ा पाने की चाहत में,
क्यों कर अपने पल पल को खो जाते हैं,
उसकी चिंता में, जो इक दिन जाना है,
क्यों कर हम ज़िन्दगी बिताते हैं।
