जिंदगी की ....
जिंदगी की ....
छोड़ जाना तो बस शरारत है
उसको भी तो हमारी आदत है,
देखना लौट आएगा फिर वो,
चंद दिनों की ये खुराफात है,
मैं जो जिद् पे अड़ा हूँ पागल सा
ये भी तो उसकी ही करामात है,
बात करनी नहीं मुझे उस से
मुझको भी उससे शिकायत है,
जानलेवा तन्हाई है जानाँ ये
और खुद से की ये बगावत है ।
तुम्हें पता भी नहीं तुम कितना
गलत बोल रहे हो
इन लफ्जों से हमारे तुम दिल मैं
जहर घोल रहे हो
और तुम्हें लगता है कि तुम्हारे
अल्फाजों से अनजान है हम
मुझे पता है तुम रकीब के पास
जाने के लिए झूठ बोल रहे हो
और हम उससे बोलने ही वाले थे
कि उसके बिन हम रह नहीं पाएंगे
मेरे दिल ने आवाज दी रहने दो ऋषि वो
नहीं बोला तो तुम क्यों सच बोल रहे हो