जिंदगी की घुड़दौड़
जिंदगी की घुड़दौड़


जिंदगी एक दौड़ में समाती है।
घोड़ा होने में इज्जत है।
गधा होने से शर्म आती है।
जबकि जिंदगी भर बोझ ढोती है।
और घोड़े की तरह,
जिंदगी भर भागती रह जाती है।
तेज बहुत तेज,
आगे सबसे आगे,
भागती ही चली जाती है।
रेस के घोड़े की तरह,
क्यों भाग रहा है।
यह जान नहीं पाती है।
बस दौड़....
बस....
सबसे तेज दौड़ती ही रह जाती है।