जिंदगी के फलसफे
जिंदगी के फलसफे
अजनबी से जिंदगी के फलसफे है, आती जाती लहरों सा शोर है,
आती जाती सांसो की रहगुजर मे, सुख दुख के दौर है।
कभी नाउम्मीदी के मेले तो कभी, रौशनी के पुरजोर रेलै है,
कभी महफिलो से वाबस्ता, तो कभी भीड़ में भी अकेले है।
हां कुछ अजनबी से रिश्तों का, कर्ज महसूस होता है कभी
लोग कहते है कि, अभी कर्ज की किश्तो का सफर बाकी है।
देखा तो है नदी को निकलते, लौटते नहीं देखा वहां
उसकी कलकल में, जिंदगी के अधूरे किस्सों का डूबना बाकी है।