ज़िन्दगी के कुछ अनकहे पल
ज़िन्दगी के कुछ अनकहे पल
कुछ पलों की थी हमारी कहानी...
एहसासों से मेरे थी मैं अनजानी...
ऐसा लगता है जैसे मेरी ज़िन्दगी खो सी गई है कहीं...
ऐसा लगता है जैसे मेरे पलकों पर रह गई है सिर्फ़ नमी...
ख़्वाब मेरे धुंधले से हो गए है...
नींद मेरी नाराज़ हो गई है...
तनहाई रह गई है सिर्फ़ मेरा हिस्सा...
अधूरा रह गया है मेरे उम्मीदों का किस्सा...
उसे कहूं भी तो क्या कहूं और कहूं भी या नहीं...
क्यूंकि लफ्ज़ मेरे उदासी में गुम है ना जाने कहीं...