ज़िंदगी के जाल में
ज़िंदगी के जाल में
जिंदगी के जाल में
लोग फंसते जा रहे हैं षड्यंत्र में
मोहरे के दाव पेंच में
तिलमिला उठा सांसद बौखला उठा कपटी नेता।
वोटों की गिनती में गरीब जनता को लूटता
उनके आशाओं को रौंदता
शोषित करता निम्न वर्ग को
चूसता उनका सार तत्व शेष छोड़ता हाड़
जल रूपी मन को उठने ना देता नभ में।
कुचलता उनके अरमान को
तृष्णा रूपी अग्नि में आहुति देता उनके इच्छाओं को।
छोड़ देता जन को तरसती
उस काग की भांति जो नीर की आस में
फिरता रहता उच्च महलों के द्वार।
फंसता रहता आम जनता नेताओं के कूटनीति में।
त्राहि माम त्राहि माम करता रहता सांसद
के दरबार में
फंसता रहता आम जनता
जिंदगी के जाल में।
