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ritesh deo

Abstract

4  

ritesh deo

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जिंदगी का सवाल मौत से

जिंदगी का सवाल मौत से

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जिंदगी मौत से सवाल करती है

मै तो सुख दुख का आभास कराती हूं नए नए रिश्ते बनाती हूं कही प्यार तो कही नफरत भी पाती हूं...

माना मै आसान तो नही पर चोट तो मैं भी खाती हूं।


जिंदगी कहती है

जब अंधेरी रात हो जाती है तो मैं ही सूरज की पहली किरण दिखाती हूं.....

जिन्दगी कहती हैं मुझे भी सुख दुःख का आभास होता है मै ही भी मुस्कुराती हूं आंसू भी बहाती है...

इन आंखो को सारा जहां दिखाती हूं इन पैरों को सारे जहां का भ्रमण कराती हूं

जो रिश्ते बनाते हैं उन में प्यार की धारा बहाती हूं मैं हर दिन हर क्षण एक नया रूप दिखाती हूं....


जिन्दगी कहती हैं मै खुद का बोझ खुद ही उठाती हूं मुझे किसी के सहारे की जरुरत नही पड़ती है

मै स्वतंत्र रहतीं हूं...मै परेशान भी होती हूं पर हल भी मैं निकाल लेती हूं

मेरा सिर्फ एक ही साथी वक्त जो की मैं उसके साथ ही चलती हूं मुझे बस शांति से वक्त का साथ देना होता है..


मौत जवाब देती है की मुझे सहारे की जरुरत होती है मै सिर्फ एक बार आती हूं

सब खत्म देती हूं मुझे सुख दुःख रिश्ते नातों का आभास नही होता है

मै आसानी से आती हूं इस लिए लोग आसान समझते हैं..

लेकिन जिंदगी तू बहुत अच्छी है तेरा साथ देने के लिए वक्त होता है

मै तो अकेली हूं इस लिए तू वक्त का साथ कभी न छोड़ना..


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