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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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जिंदगी बोल रही है

जिंदगी बोल रही है

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जिन्दगी बोल रही है

जख्म ढूंढ रहे हो तो मेरे पास आओ

खुशी ढूंढ रहे हो तो मेरे पास आओ

मैं जानती हूँ सवालों से घिरे हुए हो

उत्तर ढूंढना है तो मेरे पास आओ।

जिन्दगी बोल रही है

कोई है नहीं सुनने वाला

खामोशी के सिवाय

और वक्त जो ठहरता ही नहीं था

ठहरकर सुन रहा है

जिन्दगी के बोल

और कह रहा है

मुझे तुम्हारे साथ होना है जिंदगी।


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