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Ajay Singla

Abstract

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Ajay Singla

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जिंदगी-अब तक

जिंदगी-अब तक

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दुनिया में हम जब आये

सत्तर का दौर था,

उस समय की बात अलग

जमाना कोई और था ।


चार पांच साल तक की

बात नहीं याद अब,

छोटे से एक घर में रहते

कई परिवार साथ सब ।


मोहल्ले में सुबह से शाम

कंचे खेलने जाता था मैं,

गालों पे पापा के थप्पड़

मम्मी की डांट खाता था मैं ।


घर में टी वी नहीं था

पड़ोस में थे चले जाते,

लाइन में फिर बैठ के

चित्तरहार का आनंद थे पाते ।


घर में जब फिर टी वी आया

सारा दिन थे बैठे रहते,

बंद कर दो अब तो भाई

मम्मी पापा कहते रहते ।


घड़े का पानी थे पीते

बाजार से बर्फ थे लाते ,

आ गया जब फ्रिज घर में

आइसक्रीम थे हम जमाते ।


स्कूल तो बस नाम का था

ए बी सी छठी में पढ़े थे,

अंग्रेजी नहीं थी हमको आती

फिर भी क्लास में प्रथम खड़े थे ।


दिन में दोस्तों संग मस्ती

रात में हम छत पे सोते,

बारिशों का दौर होता

जल्दी से फिर बिस्तर ढोते ।


मेट्रिक में प्रथम आये

पापा मेडिकल दिलाये,

अंग्रेजी में थीं सब किताबें

हम को कुछ समझ न आए ।


छह महीने हो गए जब 

समझ में कुछ आने लगा,

ग्यारहवीं में पास हुए

मेडिकल भी भाने लगा ।


पी एम टी क्लियर हुआ

मेडिकल कॉलेज में गए,

रैगिंग भी जम के हुई

छह महीने बीत गए ।


दोस्ती का दौर चला

कुछ लोकल भी थे यार,

कुछ से गहरी दोस्ती थी

हॉस्टल में वो थे चार ।


अगले साल जूनियर्स की

ट्रेन हमने भी बनाई,

रैगिंग पिछले साल दी थी

लेने की अब बारी आई ।


दोस्तों के साथ महफ़िल

रात को वो मूवी जाना,

चार वो और पांचवां मैं

घंटों फिर गप्पें लड़ाना ।


स्पोर्ट्स फेस्टिवल था मस्त

हार गए,जीत गए,

पता ही नहीं चला कब

पांच साल बीत गए ।


पी जी की तैयारी में तब

ऍम सी क्यूस में उलझ गए,

सारे साथी बिछुड़ गए

इधर उधर निकल गए ।


पी जी कर के आ गए घर

शादी की और घर बसाया,

पापा ने इक छोटा सा फिर

हॉस्पिटल था खुलवाया ।


हॉस्पिटल को चलाना

इतना न आसान था,

रात को सोने न देगा

इतना न हमको भान था ।


हॉस्पिटल बड़ा हुआ

गाडी आयी घर आया,

दिन रात मेहनत की

पैसा हमने भी कमाया ।


डाक्टरनी है बीवी अपनी

और हमारे दो हैं बच्चे,

छोटा सा परिवार अपना

सब के सब हैं बहुत अच्छे ।


दस साल हो गए जब

घूमने हम जाने लगे,

झील और समुन्द्रों के

सपने हमें आने लगे ।


प्रकृति है बहुत सुँदर

इंटरनेट पे पढ़ने लगे,

ट्रैकिंग का शौक लगा

 पहाड़ों पे हम चढ़ने लगे ।


लिखने का कभी मन था होता

देर रात तक मैं जगता,

दोस्त जब बड़ाई करते

 मन को बहुत अच्छा लगता ।


बच्चे अब पढ़ लिख गए हैं

बाहर जाने की है बारी,

एक तो चला गया है

दूसरे की है तैयारी ।


हम तो अपने दिल की मानें

कोई माने या न माने,

अब तक अच्छी कटी है

आगे की राम जाने ।


 



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