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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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जिंदा कौन

जिंदा कौन

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जिंदगी वो जीते है, जो जिंदा होते है

जिंदगी वो काटते है, जो मुर्दा होते है

पत्थर के बने इंसान भी कभी रोते है

यदि वो चोट कोई इस मन पे ढोते है

वो भला क्या आंसू बहायेगा साखी,

जिसके हृदय में पाप-कुंए भरे होते है

दूसरों का बुरा चाहनेवाले लोग सदा,

फूल पास होकर भी शूलों को ढोते है

जिंदगी वो जीते है, जो ज़िंदा होते है

जिंदगी वो ढोते है, जो झूठे-घर होते है


उनके लबों पे सदा मुस्कान होती है

जो हर समस्या में गुलाब फूल होते है

जो समझते पैसे से खुशियां मिलती है,

वो जीते जी साँप की योनी होते है

वो ज़माने में बड़े खुशमिजाज होते है

जो लोग जिंदादिली की पहचान होते है

जिंदगी वो जीते है, जो जिंदा होते है

जिंदगी वो काटते है, जो मुर्दा होते है



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