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कवि हरि शंकर गोयल

Classics Inspirational

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कवि हरि शंकर गोयल

Classics Inspirational

जीवन रूपी नदी

जीवन रूपी नदी

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बड़ी अनोखी है ये जीवन की नदी

जो हमेशा कल कल बहती रहती

जमाने रूपी पर्वतों पे जमी बरफ 

मेहनत से धीमे धीमे जब पिघलती

तब वह कई धाराओं में बहने लगती

फिर जगह जगह मिलके संगम बनाती 

उसमें प्यार की मिठास घोल अमृत बनाती।


बहुत सारी बाधाएं रास्ते में हैं आती 

मगर वह अपना रास्ता खुद बनाती 

लोग खूब सारे अवरोध भी खड़े करते

कभी एनीकट तो कभी बांध बना देते 

कुछ तो अपनी सारी गंदगी डाल देते 

मीठे पानी में कड़वाहट का जहर भरते। 


मगर यह नदी सारा कचरा किनारे कर देती 

और फिर से स्नेह, वात्सल्य की मिठास भरती

अनवरत, अनथक, अविरल बहती रहती 

और भगवान रूपी सागर में जाके समा जाती। 


लोग इसे गंदा करेंगे 

इस पर बांध बनाएंगे 

इसके पानी को सोखेंगे 

इसे विलुप्त करेंगे। 


मगर, इंसान वही है जो 

वक्त के थपेड़ों से बचा के 

गंदगी को किनारे कर के 

अपनी मिठास को अक्षुण्ण कर 

मुस्कान रूपी जीवन देकर 

अनवरत चलता रहे 

अपने लक्ष्य की ओर।


बिना विचलित हुए 

बिना प्रभावित हुए 

बिना डरे, बिना लोभ लालच के 

जिसकी शीतलता में सब 

आनंद का अनुभव कर सकें 

जिसकी मिठास से सब तृप्त हों 

ऐसी जीवन रूपी नदी ही 

गंगा कहलाती है। 


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