जीवन प्रवाह
जीवन प्रवाह
प्रकृति से बड़ा दोस्त नहीं होता
कैसे आता इससे नयापन सदा
पतझड़ सा बन जब जीवन बिखरा
देखो बसंत से महकता कैसे लम्हा
रुकावटें आती है जब किसी राह में
बन नदी बदल लेना अपनी धारा
उतार - चढ़ाव सब समय से आया
फिर भी रुकता नहीं कभी जीवन प्रवाह
प्रकृति देती है सबको हौसला
नहीं रहती जब जीवन इच्छा
गुणों से भरपूर जिंदगी की हवा
ना उदास मन से इसे तू बहा
जो सोचा एकदम अगर हो जाता
फिर कौन बदलता अपना कारवां
रुक - रूक कर इंतज़ार से जो मिला
उसमें बसा होता है रस जीवन प्रवाह का
प्रकृति से जो सच्चे मन से जुड़ा
उससे सफल ना कोई कभी होगा
हर आते - जाते पल को यादगार बना
जिस भी हाल में हो ख़ुशी से इन्हें बिता
अपनी कल्पना से कभी नहीं बंधना
लगे रहना खुद को महकाने में सदा
ऊँची - ऊँची उठी लहरों से डरकर
जीवन प्रवाह को तू ना ऐसे रोकना।
