हिंदी गंगे
हिंदी गंगे
पर्वत राज हिमालय से,
निकली ज्यों सुरसरी धारा
माँ शारदे की मधुर वाणी से ,
निकली है यह हिंदी की धारा।
देश-देशांतर का भेद मिटाकर ,
सभी भाषाओं को संग लेकर ,
अपने-पराये का भेद मिटाती धारा .
हृदय को हृदय से है जोड़ती,
भावों को भावों से जोड़ती,
बहती जिसमें प्रेम की धारा ।
भाव -अभिव्यक्तियों से भरी
नवरस की मिठास जिसमें भरी ,
कहे- अनकहे को भी व्यक्त करती धारा ।
कला, साहित्य, विज्ञान हो या अर्थ शास्त्र,
चिकित्सा, अनुसंधान या राजनीति शास्त्र,
हर विषयों को अपने रंग में रंगती धारा ।
हिंदी की इस पवित्र ,निर्मल ,
धारा में आओ हम गोते खायें ,
करके संरक्षण और पालन कर .
स्वदेश/ विश्व में इस भाषा को अमर बनाना हो
ध्येय हमारा ।