जीवन मूल्य
जीवन मूल्य
आज वर्तमान युग में इंसान जीवन में जितना आगे बढ़ रहा है, उतना ही जीवन मूल्यों को पीछे छोड़ता जा रहा है। उस से जुड़ी एक घटना मुझे याद आती है।
एक बार की बात है, पाखी बस से सफर कर रही थी। बस में अधिक भीड़ नहीं थी, सभी को यथायोग्य स्थान प्राप्त था। उसके पीछे एक गर्भवती स्त्री खड़ी भी नहीं हो पा रही थी, और उसकी बूढ़ी माँ बिचारी बार-बार कोशिश करने पर भी उसकी मदद नहीं कर पा रही थी और ऊपर से कंडक्टर मदद करने की बजाए चिल्लाए जा रहा था। उस गर्भवती स्त्री की हालत बहुत खराब लग रही थी।
पाखी ने बस में चारों ओर नजर दौड़ाई, सभी लोग उस घटना का तमाशा देख रहे थे, जैसे कि किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ता। उसकी बूढ़ी मां की असहाय स्थिति को देखकर पाखी से रहा न गया । उसने अपनी सीट से खड़े होकर उस स्त्री को उठाने में सहायता की एवं धीरे से नीचे उतारने में मदद की, जब उनका गंतव्य आ गया तब पुनः उनको नीचे उतारने में मदद की तो वह स्त्री एवं उनकी मां ने जो आशीर्वाद भरे हाथ उठाए पाखी के लिए उठाए तो उसे ऐसा लगा कि वह दुनिया की सबसे खुशनसीब इंसान है जो उनका आशीर्वाद पाखी को मिला।
अब पाखी से रहा न गया और उसने उतारने से पहले कंडक्टर और बस वालों को उनके व्यवहार पर यह सोचकर फटकार लगाई कि शायद किसी का जमीर जाग जाए । अगली बार किसी असहाय को देखकर मदद कर दें । यह घटना भले छोटी सी हो, पर बहुत ही प्रेरक है । आज के दौर में किसी भी घटना के होने पर लोग मदद करने की बजाय, तमाशा देखने में लगे रहते हैं। कभी-कभी हमारा एक मदद का छोटा सा कदम, किसी के लिए वरदान साबित हो सकता है।