जीवन की नाव
जीवन की नाव
संसार रूपी महा सागर में बढ़ती जा रही है मेरे जीवन की नाव।
कभी अनुकूल तो कभी प्रतिकूल उठती हुई इन लहरों के साथ।।
सीख लिया मैंने भी इन लहरों के साथ चलना थामकर पतवार।
विश्वास है खुद पर निकल आऊंँगा गर फंँसी नाव बीच मझधार।।
चलते-चलते कई साथी थे मिले मिला साथ चलने को हमसफ़र।
कोई आज तक साथ चल रहा है और कोई वादे से गया मुकर।।
यह तो जीवन है यहांँ तो आना-जाना मुसाफिरों का लगा रहेगा।
चलती रहेगी ये जीवन नाव कभी इस पार कभी उस पार होगा।।
साहिल मिलता नहीं हर नाविक को कुछ रह जाते हैं भटककर।
कुछ डर जाते लहरों से कुछ बिखर जाते तूफ़ानों से टकराकर।।
पर हिम्मत और हौसला साथ लेकर यहाँ चलते हैं जो मुसाफ़िर।
आएं कैसी भी कठिनाईयांँ उनकी राह में उन्हें रहती कहाँ फ़िक्र।।
सीख ले हर कोई अगर इस महासागर में उठती लहरों की चाल।
फिर डूबा दे कश्ती बीच मझधार तूफानों की होगी क्या मजाल।।
